Wednesday 7 March 2012

उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।


उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।
उसने पूछा था – मेरी आँखें कैसी हैं?
मैने कहा – मैखाने में वो बात न होगी जो इन आँखों में है,
इतनी नशीली रात न होगी जो इन आँखों में है,
कहीं ऐसी सोगात न होगी जो इन आँखों में है,
ऐसी कोई बरसात न होगी जो इन आँखों में है।
             इनमें चैन है और चाह भी,
             इनमें मंजिल है और राह भी,
             इनमें सूकून है और आह भी,
             इनमें गुमनानी है और पनाह भी।
उसने पूछा था होंठ कैसे हैं, मैं हर एक रंग के गुलाब लाया हूँ।
उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।
उसने पूछा था – मेरी हँसी कैसी है?
मैने कहा – ये अलबेली, चंचल कुछ चोर सी है,
ये धूप की गर्मी, घटा घनघोर सी है,
दूर क्षितिज पर आती हुई भोर सी है,
सूनेपन में पायल के शोर सी है।
        जो चाहत जगा दे इसमें वो प्यार है,
         धङकनें तेज कर दे ऐसी झंकार है,
        इसके बाद बस इसी का इंतजार है,
        नजरें उठा कर देखो हर कोई बेकरार है।
उसने पूछा था मैं दिखती कैसी हूँ, मैं परियों से हुस्न बेहिसाब लाया हूँ।
उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।
उसने कहा कुछ और कहो न –
मैंने कहा – सूरज की किरणों की ठिठोली लगती हो,
एक दो रंग नहीं, रंगोली लगती हो,
शरारती तितली की हमजोली लगती हो,
अप्सरा या परी नहीं बङी भोली लगती हो।
             तुम इतनी मासूम हो उतनी चंचल भी,
             तुम सागर का शोर उसकी कलकल भी,
             तुम थमा हुआ सैलाब और बेकल भी,
             तुम सूकून भरी नदी उसमें हलचल भी।
उसने पूछा था क्या देना चाहते हो, मैं तमाम रातों के ख्वाब लाया हूँ।
उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।