Tuesday 14 October 2014


13/01/2012

हम क्यूँ बेवज़ह हीं ये दर्द सह रहे हैं ?

वो चला गया शायद हमसे रूठ कर,

                 जिसे चाहा था पूरी तरह टूट कर । 

वो मेरा कभी था ही नहीं जिसे अपना मानते थे,

             कितने नासमझ थे इतना भी नहीं जानते थे। 

आज वो चला गया और मैं रो रहा हूँ,

                उसकी तस्वीर आंसुओं से धो रहा हूँ । 

पर क्या करूँ उसका चेहरा जाता ही नहीं है,

             इन नज़रों में कुछ और आता हीं नहीं है। 

ये तड़प है, बेचैनी है, कैसी  खुमारी है। 

            मेरा दिल तो मेरे पास है, फिर क्यूँ बेकरारी है। 

देखो ना ! वो चला गया फिर इंतज़ार क्यूँ कर रहा हूँ?

                ये दिल तो टूट गया है, फिर प्यार क्यूँ कर रहा हूँ ?

सबके दिलों में होता है जो हम आज कह रहे हैं,

     हम क्यूँ बेवजह हीं ये दर्द सह रहे हैं ?

वो झोंका था, तूफ़ान था या खुशनुमा एहसास था,

           सबसे करीब था, वही सबसे खास था । 

मैं खुश कैसे रहूँ जब वो मुझसे दूर हो गया है

             मैं तो बिलकुल ठीक हूँ , दिल मज़बूर हो गया है । 

पुकारता हूँ मैं रातों में दिन भर  सोंचता रहता हूँ

                मुझमें कहीं गुम है वो बस उसे खोजता रहता हूँ |

सब कहते हैं परेशान हो तुम आराम तो लो

                  मुझे सकूँ मिल जाएगा तुम उसका नाम तो लो|

अब तो ये जिंदगी भी बेजान सी हो गयी है

                   साँसें बोझ धड़कन गुमनाम सी हो गयी है|

आँखें बंद हैं मेरी अब मैं खो रहा हूँ

                  कई रातों से जगा हूँ चैन से सो रहा हूँ|

किधर से आए और जाने कहाँ बह रहे हैं

         हम क्यूँ बेवजह ही ये दर्द सह रहे हैं|

Wednesday 31 July 2013

मैने उसे देखा देखता ही रहा
की वो मुझसे दूर चली जा रही थी |

कभी नही भूला मैं उस शाम को,
 
बेइंतहाँ प्यार में मिले अनोखे इनाम को |

हाथों में गुलाब लिए उनका इंतज़ार कर रहा था,

बहुत दिनों बाद मिलना था खुद को तैयार कर रहा था |

वो जो दूर से आती दिखी मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गयी,

हाथों में कंपकंपी, होंठों पे थरथराहट, जान में जान आ गयी |

आज क्या बात थी उन्होने मिलने बुलाया था,

उल्टी-सीधी बातें सोच दिल बड़ा घबराया था |

करीब आकर, कातिलाना मुस्कुराकर, उन्होने कहा,

उन्हे सुनना कितना अच्छा लग रहा था, मैं चुपचाप रहा |

मुझे पता है हम कभी नही मिलेंगे, इसलिए मैं ये रिश्ता तोड़ रही हूँ,

तुम मुझे कभी छोड़ नही सकते तो मैं तुम्हे छोड़ रही हूँ |

वापस लौटा रही हूँ तुम्हारे बेशुमार प्यार को,

तुम्हारे कीमती दिल को, उससे जुड़े हर तार को |

तुम्हे मेरी कसम है आज कुछ नहीं कहना,

मैं सुन नहीं पाऊँगी इसलिए चुप ही रहना |

ये आख़िरी मुलाकात है, मैं अब जा रही हूँ,

मेरा इंतज़ार मत करना बस इतना ही कह पा रही हूँ |

मैने कुछ नही कहा, बस उसे सुनता रहा,

बिखरे दिल के टुकड़ों को चुपचाप चुनता रहा |

साथ ले जा रही हूँ तुम्हारे लाए इस गुलाब को,

आज बराबर कर दिया तुम्हारे प्यार के हिसाब को |

आँखें जो नम हुई उसकी मुझे दर्द होने लगा,

वो जाने लगी मैं बीती यादों में खोने लगा |

मुड़कर न देखा मुझे वो सूरज की तरह ढली जा रही थी,

मैने उसे देखा देखता ही रहा की वो मुझसे दूर चली जा रही थी ||

Friday 29 March 2013

ये जिंदगी तुम बिन अधूरी रह जाएगी...


03/09/2011

ये जिंदगी तुम बिन अधूरी रह जाएगी...

क्या किस्मत भी पाई है मैने,

ये चाहत क्यूँ अपनाई है मैनै,

न तू मेरा है न मेरा हो सकता है,

फिर भी ये आस क्यूँ लगाई है मैने।

              तू मुझे दिखता हर जगह क्यूँ है,

              मुझमें कुछ इतना अहजह क्यूँ है,

              मैं क्या करूँ कैसे खत्म हो,

              जो इन्तजार इतना बेवजह क्यूँ है।

लोग मुझे अपने दिल की बात बताते हैं,

खुशी के पल गम के जज्बात बताते हैं,

मैं बस सुनता हूँ पर समझता तब हूँ,

जब वो अपनी जुदाई की रात बताते हैं।

मैं क्या किसी के दिल को समझूँ, मेरी तो खुद के दिल से दूरी रह जाएगी,

ये जिंदगी तुझ बिन अधूरी रह जाएगी...

ये जिंदगी तुझ बिन अधूरी रह जाएगी...

मैं क्या कहूँ मैने सपनों को टूटते देखा है


18/08/2011

मैं क्या कहूँ मैने सपनों को टूटते देखा है

पहली बार में ही जिससे प्यार हो गया,

थोङा ही सही पर ऐतबार हो गया।

वो चली गई मैं उसे प्यार करता रहा,

उसे पाने की कोशिशें हर बार करता रहा।

बहुतों से पूछा कोई बता न सका,

मैं अपने दिल से उसको हटा न सका।

कहीं न कहीं वो मेरे मन में रही,

मेरे जोश, मेरी ताकत, मेरी लगन में रही।

ये चाहत की आग है जो कम नहीं होती,

जलाती भी नहीं और खतम नहीं होती।

जिन हाथों को इन हाथों में लेना मेरा सपना था,

वो महज एक ख्वाब था जिसमें वो अपना था।

वो कहता है तुमने बताने में देर कर दी,

प्यार इतना था पर जताने में देर कर दी।

इन हाथों से वो हाथ मैने छूटते देखा है,

मैं क्या कहूँ मैने सपनों को टूटते देखा है

सालों बाद उसने ये इकरार किया,

हाँ, मैने भी तुमसे प्यार किया।

वो कुछ यूँ मेरे करीब आ गई,

आँखों में थी अब साँसों में छा गई।

वो मुझे अपना इन्तजार नहीं करने देती,

इतनी कातिल है, किसी और से प्यार नहीं करने देती।

अब ये दर्द हदों को पार कर रहा है,

वो मेरा है पर मुझसे इनकार कर रहा है।

वो कहता है मेरी बहुत सी मजबूरी है,

मिट न सकेगी जो बीच की ये दूरी है।

उसे याद करना कभी मुझसे छूटता नहीं,

मैं चाहता हूँ तो भी ये रिश्ता टूटता नहीं।

पता नहीं मुझे उस पर क्यूँ अब भी ऐतबार है,

उम्मीद नहीं आने की फिर भी इन्तजार है।

काश, अब वो मुझसे जुदा हो जाता,

य़ा फिर मेरा होकर मेरा खुदा हो जाता।

या तो दूर कर मुझसे या मेरी चाह को दिला दे,

मंजिल ना सही पर राह तो दिला दे।

अब ये दर्द मुझसे सहा नहीं जाता,

ये खत्म हो जाए, ऐसा भी कहा नहीं जाता।

नाराज होंगे तुमसे कई साथी, मैने खुदा को खुद से रूठते देखा है,

मैं क्या कहूँ मैने सपनों को टूटते देखा है

मैं क्या कहूँ मैने सपनों को टूटते देखा है
मैं क्या कहूँ मैने सपनों को टूटते देखा है


Wednesday 7 March 2012

उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।


उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।
उसने पूछा था – मेरी आँखें कैसी हैं?
मैने कहा – मैखाने में वो बात न होगी जो इन आँखों में है,
इतनी नशीली रात न होगी जो इन आँखों में है,
कहीं ऐसी सोगात न होगी जो इन आँखों में है,
ऐसी कोई बरसात न होगी जो इन आँखों में है।
             इनमें चैन है और चाह भी,
             इनमें मंजिल है और राह भी,
             इनमें सूकून है और आह भी,
             इनमें गुमनानी है और पनाह भी।
उसने पूछा था होंठ कैसे हैं, मैं हर एक रंग के गुलाब लाया हूँ।
उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।
उसने पूछा था – मेरी हँसी कैसी है?
मैने कहा – ये अलबेली, चंचल कुछ चोर सी है,
ये धूप की गर्मी, घटा घनघोर सी है,
दूर क्षितिज पर आती हुई भोर सी है,
सूनेपन में पायल के शोर सी है।
        जो चाहत जगा दे इसमें वो प्यार है,
         धङकनें तेज कर दे ऐसी झंकार है,
        इसके बाद बस इसी का इंतजार है,
        नजरें उठा कर देखो हर कोई बेकरार है।
उसने पूछा था मैं दिखती कैसी हूँ, मैं परियों से हुस्न बेहिसाब लाया हूँ।
उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।
उसने कहा कुछ और कहो न –
मैंने कहा – सूरज की किरणों की ठिठोली लगती हो,
एक दो रंग नहीं, रंगोली लगती हो,
शरारती तितली की हमजोली लगती हो,
अप्सरा या परी नहीं बङी भोली लगती हो।
             तुम इतनी मासूम हो उतनी चंचल भी,
             तुम सागर का शोर उसकी कलकल भी,
             तुम थमा हुआ सैलाब और बेकल भी,
             तुम सूकून भरी नदी उसमें हलचल भी।
उसने पूछा था क्या देना चाहते हो, मैं तमाम रातों के ख्वाब लाया हूँ।
उसने जो सवाल किया था, मैं उसका जवाब लाया हूँ।




Monday 18 July 2011

Kaash! Main KHUDA hota, main koi insaan nahi hota....

14/07/2011
काश! मैं खुदा होता, मैं कोई इऩसान नहीं होता।
ऊसकी आँखें, ऊसकी सूरत, ऊसकी बातें याद आतीं हैं,

हर पल मुझे ऊसकी मुलाकातें याद आतीं हैं।

जाने कौन सा पल था, जब वो मुझसे जुदा हो गया,

दिल में छिपाकर रखा था, कैसे गुमशुदा हो गया।

जाने क्या वजह थी जो गम मेरा मुकद्दर बन गया,

कुछ कतरों को रोका था, जो अब समन्दर बन गया।

दर्द बेईन्तहां है और नशा बेशुमार है,

दिल, आँखें, जुबाँ, जज्बात सब बेकरार है।

बहुत रोता है मन और एक ही ख्याल आता है,

जब भी अकेले होता हूँ बस यही सवाल आता है।

क्यूँ चाहते ऊसी को जिसका मिलना आसान नहीं होता,

काश! मैं खुदा होता, मैं कोई इऩसान नहीं होता।

मेरी क्या गलती अगर मैं प्यार कर रहा हूँ,

कई जन्मों से तेरा इन्तजार कर रहा हूँ।

आज मैं वक्त से बिल्कुल ही हार गया,

ये सबसे नाजुक लम्हा था पर मुझको मार गया।

मैं पागलों की तरह उन गलियों में जाता रहता हूँ,

तेरे सपने दिखा कर खुद को बहलाता रहता हूँ।

लोग हंसते हैं और मुझे मजनू का नाम देते हैं,

दीवाना, आशिक और बहुत से इल्जाम देते हैं।

मैं भी इश्क की गलियों में यूँ बदनाम नहीं होता,

काश! मैं खुदा होता, मैं कोई इऩसान नहीं होता।

उसे हासिल करना कितना आसान हो जाता,

पास बुला लेता अगर परेशान हो जाता।

मेरी हसरतें इस तरह अधूरी नहीं होतीं,

साँसें या धङकन जरूरी नहीं होतीं।

चमकता सितारा मेरा नसीब होता,

मैं जब चाहता उसके करीब होता।

न बेचैनी, न प्यास, न बेकरार होता,

न जुदाई न ही कभी इन्तजार होता।

कुछ और होता पर मुकद्दर मेरा शमशान नहीं होता,

काश! मैं खुदा होता, मैं कोई इऩसान नहीं होता।

काश! मैं खुदा होता, मैं कोई इऩसान नहीं होता।